प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शुक्रवार को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के वर्ष भर चलने वाले स्मरणोत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया। पीएम मोदी ने ‘वंदे मातरम, नाद एकम, रूपम अनेक’ कार्यक्रम देखा, जहां विभिन्न प्रसिद्ध राष्ट्रीय कलाकारों द्वारा हिंदुस्तानी और कर्नाटक गायन शैलियों में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की प्रस्तुति दी गई।
उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि 7 नवंबर 2025 का दिन बहुत ऐतिहासिक है। आज हम ‘वंदे मातरम’ के 150वें वर्ष का महाउत्सव मना रहे हैं। यह पुण्य अवसर हमें नई प्रेरणा देगा और कोटि-कोटि देशवासियों को नई ऊर्जा से भर देगा।
इस दिन को इतिहास की तारीख में अंकित करने के लिए आज ‘वंदे मातरम’ पर एक विशेष सिक्का और डाक टिकट भी जारी किए गए हैं। इस मौके पर पीएम मोदी ने देश के लाखों महापुरुषों और मां भारती की संतानों को ‘वंदे मातरम’ के लिए जीवन खपाने के लिए श्रद्धापूर्वक नमन किया।
अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम’, ये शब्द एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है और एक संकल्प है। ‘वंदे मातरम’, ये शब्द मां भारती की साधना है, मां भारती की आराधना है। ‘वंदे मातरम’, ये शब्द हमें इतिहास में ले जाता है, ये हमारे वर्तमान को नए आत्मविश्वास से भर देता है और हमारे भविष्य को ये नया हौसला देता है कि ऐसा कोई संकल्प नहीं जिसकी सिद्धि न हो सके, ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जिसे हम भारतवासी पा न सकें।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुलामी के उस कालखंड में ‘वंदे मातरम’ इस संकल्प का उद्घोष बन गया था कि भारत की आजादी का, मां भारती के हाथों से गुलामी की बेड़ियां टूटेंगी। उसकी संतानें स्वयं अपने भाग्य की विधाता बनेंगी। वंदे मातरम आजादी के परवानों का तराना होने के साथ ही इस बात की भी प्रेरणा देता है कि हमें इस आजादी की रक्षा कैसे करनी है।
उन्होंने आगे कहा कि इस गीत की रचना गुलामी के कालखंड में हुई, लेकिन इसके शब्द कभी भी गुलामी के साए में कैद नहीं रहे। वे गुलामी की स्मृतियों से सदा आजाद रहे। इसी कारण ‘वंदे मातरम’ हर दौर में, हर काल में प्रासंगिक है। इसने अमरता को प्राप्त किया है।
वहीं, बंकिमचंद्र को याद करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, “1875 में, जब बंकिम बाबू ने ‘बंग दर्शन’ में ‘वंदे मातरम’ प्रकाशित किया था, तब कुछ लोगों को लगा था कि यह तो बस एक गीत है। लेकिन देखते ही देखते ‘वंदे मातरम’ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का स्वर बन गया। एक ऐसा स्वर, जो हर क्रांतिकारी की जुबान पर था, एक ऐसा स्वर, जो हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा था।”
उन्होंने आगे लिखा, “1937 में, ‘वंदे मातरम’ के महत्वपूर्ण पदों, उसकी आत्मा के एक हिस्से को अलग कर दिया गया था। ‘वंदे मातरम’ को तोड़ दिया गया था। इस विभाजन ने, देश के विभाजन के भी बीज बो दिए थे। राष्ट्र-निर्माण के इस महामंत्र के साथ यह अन्याय क्यों हुआ, यह आज की पीढ़ी को जानना जरूरी है। क्योंकि वही विभाजनकारी सोच आज भी देश के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।”
देशवासियों को संदेश देते हुए पीएम मोदी ने कहा कि हमें इस सदी को भारत की सदी बनाना है। यह सामर्थ्य भारत में है, यह सामर्थ्य 140 करोड़ भारतीयों में है और इसके लिए हमें खुद पर विश्वास करना होगा।
यह कार्यक्रम 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक चलने वाले एक साल के राष्ट्रव्यापी स्मरणोत्सव का औपचारिक शुभारंभ है। दरअसल, वर्ष 2025 में वंदे मातरम गीत की रचना के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित हमारा राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम अक्षय नवमी के पावन अवसर पर, 7 नवंबर 1875 को लिखा गया था। वंदे मातरम पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में उनके उपन्यास आनंदमठ के एक अंश के रूप में प्रकाशित हुआ था।